12. नियोजित विकास की राजनीति (B-2)

🔥 राजनीति विज्ञान कक्षा 12 नोट्स अध्याय 3 नियोजित की राजनीति 🔥


✳️ नियोजन :-

🔹 नियोजन का आशय है उपलब्ध संसाधनों के श्रेष्ठतम प्रयोग के लिए भविष्य की योजना बनाना । नियोजन के माध्यम से उत्पादन में वृद्धि , रोजगार के अवसरों में वृद्धि और आर्थिक स्थिरता आदि लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है ।

✳️ भारत के विकास का अर्थ :-

🔹 आजादी के बाद लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि भारत के विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक समाजिक न्याय दोनो ही है । इस बात पर भी सहमति थी कि आर्थिक विकास और सामाजिक - आर्थिक न्याय को केवल व्यवसायी , उद्योगपति व किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता । सरकार को प्रमुख भूमिका निभानी होगी । आजादी के वक्त ' विकास ' का पैमाना पश्चिमी देशों को माना जाता था । आधुनिक होने का अर्थ था पश्चिमी औद्योगिक देशों की तरह होना ।

✳️ भारतीय विकास के मॉडल :-

🔹 विकास के दो मॉडल थे पहला - उदारवादी - पूँजीवादी मॉडल तथा दूसरा - समाजवादी मॉडल । भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल , जिसमें सार्वजनिक व निजी क्षेत्र दोनों के गुणों का समावेश था , अपनाया ।

🔹 ( i ) उदारवादी - पूंजीवादी मॉडल - यह मॉडल यूरोप के अधिकतर देशों और अमेरिका में यह मॉडल अपनाया गया था |

🔹 ( ii ) समाजवादी मॉडल - यह मॉडल सोवियत रूस में अपनाया था । भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का मॉडल अपनाया जिसमें सार्वजानिक व निजी क्षेत्र दोनों के गुणों का समावेश था |

✳️ बोम्बे प्लान :-

🔹  1944 में उद्योगपतियों का एक तबका एकजुट होकर देश में नियोजन अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया | इसे बोम्बे प्लान कहा जाता है ।

✳️ बोम्बे प्लान का उदेश्य :-

🔹 सरकार औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए ।

🔹 इस तरह चाहे दक्षिणपंथी हो अथवा वामपंथी , उस वक्त सभी चाहते थे कि देश नियोजित अर्थव्यवस्था की राह पर चले |

🔹 इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त प्रस्ताव तैयार किया ।

✳️ योजना आयोग :-

🔹  भारत के आजाद होते ही योजना आयोग अस्तित्व में आया | प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष बने | भारत अपने विकास के लिए कौन - सा रास्ता और रणनीति अपनाएगा - यह फैसला करने में इस संस्था ने केन्द्रीय और सबसे प्रभावशाली भूमिका निभाई ।

✳️  योजना आयोग की कार्यविधि :-

🔹सोवियत संघ की तरह भारत के योजना आयोग ने भी पंचवर्षीय योजनाओं का विकल्प चुना ।

🔹 भारत - सरकार अपनी तरफ से एक दस्तवेज तैयार करेगी जिसमें अगले पांच सालों के लिए उसकी आमदनी और खर्च की योजना होगी ।

🔹  इस योजना के अनुसार केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के बजट को दो हिस्सों में बाँटा गया |

🔹 एक हिस्सा गैरयोजना - व्यय का था | इसके अंतर्गत सालाना आधार पर दिनदैनिक मदों पर खर्च करना था | दूसरा हिस्सा योजना व्यय था |

✳️ प्रथम पंचवर्षीय योजना :-

🔹  यह योजना 1951 से 1956 तक थी ।

🔹  इसमें ज्यादा जोर कृषिक्षेत्र पर था ।

🔹 इसी योजना के अन्तर्गत बाँध और सिचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया ।

🔹 भागड़ा - नांगल परियोजना इनमे से एक थी ।

✳️ द्वितीय पंचवर्षीय योजना :-

🔹 यह योजना 1956 से 1961 तक थी ।

🔹 इस योजना में उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया ।

🔹  सरकार ने देसी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया ।

🔹 इस योजना के योजनाकार पी . सी . महालनोबीस थे ।


✳️ विकास का केरल मॉडल :-

🔹 केरल में विकास और नियोजन के लिए अपनाए गए इस मॉडल में शिक्षा , स्वास्थ्य , भूमि सुधार , कारगर खाद्य - वितरण और गरीबी उन्मूलन पर जोर दिया जाता रहा है ।

🔹 जे . सी . कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशास्त्रीयों ने विकास की वैकल्पिक योजना प्रस्तुत की , जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर ज्यादा जोर था ।

🔹 चौधरी चरण सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केन्द्र में रखने की बात प्रभावशाली तरीके से उठायी ।

🔹 भूमि सुधार के अन्तर्गत जमींदारी प्रथा की समाप्ति , जमीन के छोटे छोटे टुकड़ों को एक साथ करना ( चकबंदी ) और जो काश्तकार किसी दूसरे की जमीन बटाई पर जोत - बो रहे थे , उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान करने व भूमि स्वामित्व सीमा कानून का निर्माण जैसे कदम उठाए गए ।

🔹 1960 के दशक में सूखा व अकाल के कारण कृषि की दशा बद से बदतर हो गयी । खाद्य संकट के कारण गेहूँ का आयात करना पड़ा ।

✳️ हरित क्रांति :-

🔹 सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक नई रणनीति अपनाई , जो कि हरित क्रान्ति के नाम से जानी जाती है । अब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का निर्णय किया , जहाँ सिचाई सुविधा मौजूद थी , तथा किसान समृद्ध थे । सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज , उवर्रक , कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराना शुरू किया । उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीदने की गारन्टी दी । इन संयुक्त प्रयासों को ही हरित क्रान्ति कहा गया । भारत में हरित क्रान्ति के जनक एम . एस . स्वामीनाथन को कहा जाता है ।

✳️ हरित क्रांति के सकरात्मक प्रभाव :-

🔹 इसके कारण खेती की पैदावार में बढ़ोतरी हुई ।

🔹 इसके कारण गेहूँ की पैदावार में बढ़ोत्तरी हुई ।

🔹  पंजाब हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाके समृद्ध हुए ।

🔹 किसानों की स्थिति में सुधार आया ।

  ✳️ हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव :-

🔹 क्षेत्रीय व सामाजिक असमानता बढ़ी ।

🔹  हरित क्रांति के कारण गरीब किसान व बड़े भूस्वामी के बीच अंतर बढ़ा जिससे वामपंथी संगठनों का उभार हुआ ।

🔹 मध्यम श्रेणी के भू - स्वामित्व वाले किसानों का उभार हुआ ।

✳️ श्वेत क्रान्ति :-

🔹 ' मिल्कमैन ऑफ इंडिया ' के नाम से मशहूर वर्गीज कुरियन ने गुजरात सहकारी दुग्ध एवं विपरण परिसंघ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और ' अमूल ' की शुरूआत की । इसमें गुजरात के 25 लाख दूध उत्पादक जुड़े । इस मॉडल के विस्तार को ही श्वेत क्रान्ति कहा गया ।